कविता कोष से "साभार"

खुलता नहीं है हाल किसी पर कहे बग़ैरपर दिल की जान लेते हैं दिलबर कहे बग़ैर
मैं क्यूँकर कहूँ तुम आओ कि दिल की कशिश से वोआयेँगे दौड़े आप मेरे घर कहे बग़ैर
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बग़ैर
बेदर्द तू सुने ना सुने लेक दर्द-ए-दिल रहता नहीं है आशिक़-ए-मुज़तर कहे बग़ैर
तकदीर के सिवा नहीं मिलता कहीं से भी दिलवाता ऐ "ज़फ़र" है मुक़द्दर कहे बग़ैर

Comments

Popular posts from this blog

साहित्‍यिक पत्र-पत्रिकाएँ

लतीफे

प्रेरक प्रसंग